काफ़िया-अते
रदीफ़-हों जैसे
2122 2122 2122
आप ही अशआर में दिखते हों जैसे
हम तस्व्वुर में ग़ज़ल कहते हों जैसे
वो हमारे सामने हैं अजनबी से
ऐसे हम यादों में ही मिलते हों जैसे
सर्द रातों के किसी अहसास में हम
उम्र भर अहसास को लिखते हों जैसे
खूब बरसीं बारिशें हम पर ग़मों की
हम ग़मो की बारिश में खिलते हों जैसे
उसने ही तो प्यार को काबा बताया
वो नमाज़े इश्क़ में मिलते हों जैसे
-आकिब जावेद
4 टिप्पणियाँ
बढ़िया ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 2 दिसंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाह
जवाब देंहटाएंउम्दा !
जवाब देंहटाएंThanks For Visit My Blog.