वज़्न --122 122 122 12
बह्रे - मुतक़ारिब मुसम्मन महज़ूफ़
अर्कान--फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल
तेरी ही लगन अब लगी है फ़क़त
मेरे दिल में तेरी कमी है फ़क़त
नज़र में है मेरे तेरी सादगी
तू ही अब मेरी ज़िन्दगी है फ़क़त
मुझें भूल जाती है अक्सर वो क्या
या पलभर की नाराजगी है फ़क़त
उसे छोड़ के ज़िन्दगी में मेरे
बची अब ये आवारगी है फ़क़त
ग़ज़ल की है वो काफ़िया भी मेरी
सजी उससे ही शायरी है फ़क़त
✍️आकिब जावेद
स्वरचित/मौलिक
7 टिप्पणियाँ
बहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय जी💐
जवाब देंहटाएंवाह ! हर शेर उम्दा । बेहतरीन गजल ।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत शुक्रिया, मुहब्ब्त ज़िंदाबाद❤️🌹
हटाएंवाह!बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंसादर
आपका बहुत बहुत शुक्रिया, मुहब्ब्त ज़िंदाबाद❤️🌹
हटाएंबहुत खूबसूरत ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आपका
हटाएंThanks For Visit My Blog.