कल्पनाओं से भरा
किताबो से
कुट्टी किए
अक्षर नही
समझता।
चीज़ों की
समझ लिए
आँखों में
चमक भरे ,
नितदिन विद्यालय आना
फिर शिक्षक से यूं
आकर हाथ मिलाना
अनगिनत प्रकार से
कितने प्रश्न दे जाता है?
काँटो में
गुलाब खिलेगा
क्या वो अपने
रंग भरेगा?
मासूम मुस्कान की कीमत
शायद इस लोक में तो नही
शायद किसी भी
लोक में नही।।
-आकिब जावेद
बाँदा,उत्तर प्रदेश
5 टिप्पणियाँ
हार्दिक आभार आदरणीय सर💐
जवाब देंहटाएंसंवेदनाओं से भरपूर।
जवाब देंहटाएंसुंदर सार्थक सृजन।
आपका बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया जी
हटाएंयह मासूमियत कब तक टिकेगी ज़िंदगी से दोचार होने के लिए पढ़ना तो पढ़ेगा
जवाब देंहटाएंआदरणीया जी बिल्कुल पढ़ना पढ़ेगा,लेकिन जो कविता का मूल उद्देश्य है वहाँ तक आप नही पहुँच पायी।
हटाएंThanks For Visit My Blog.