भोर की लालिमा,
पक्षियों की चहचहाहट
के मध्य मद्धम-मद्धम,
हवा में घुल रही
पुष्पो की महक।
जिसमें नज़र आती है,
तुम्हारे साथ बिताए
हुए सम्पूर्ण पल,
जिसमें उपजी थी;
मोहब्बत की कोपलें,
जो खिलने को तैयार थी;
आपकी याद में।
आज भी इंतज़ार
कर रही है ; वो भोर
वो लालिमा,
वो पुष्प एवं
वही महकती
हवा।
~आकिब जावेद
2 टिप्पणियाँ
खूबसूरती से याद किया यादों को ।
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया जी❤️❤️
हटाएंThanks For Visit My Blog.