राजा मुग्ध रहता है
अपनी बनाई हुई सल्तनत में
शेर जंगल में रहता है मुग्धता में।
इस मुग्धता में पत्ते वृक्षों से अलग हुए
टहनी टूटी डालियों से
प्रेमी अलग हुए प्रेमिकाओं से
अंतरिक्ष से तारा टूटा मुग्धता में।
अमीर मुग्ध अपनी अमीरी पर
फक्कड़ फ़कीर मुग्ध हैं फकीरी में
आत्मा मुग्धता में चूर है
दूर है परमात्मा से
संसार में सभी मुग्ध हैं।
मुग्ध नहीं हैं तो सिर्फ़ वो
जो स्वीकार नहीं करते बंधन
अतः आज़ाद हैं
बंधनों से मुग्धता से
क्यूंकि वो जानते हैं
आत्म प्रदर्शन मुग्ध कर देता है।
आकिब जावेद
बांदा ,उत्तर प्रदेश
6 टिप्पणियाँ
बेहतरीन andaj
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया जी
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया सर
हटाएंसच है !
जवाब देंहटाएंजी बहुत बहुत शुक्रिया आपका
हटाएंThanks For Visit My Blog.