पढ़े कविता बूंद

बूंद

बारिश की बूंदें धरती में गिरने से पहले
यात्रा करती है कई मील दूर तक
उसकी इस यात्रा में बिछड़ते है
ऐसे साथी जो देते हैं वचन
धरती तक साथ निभाने का
लेकिन बिछड़ना तो तय है।

क्योंकि
बूंदें स्वयं से विलग होकर
शेष रह जाती है कण बराबर
अंत में
छोड़ना होता है वैरागी संसार
मिलना ही होता है दूसरे में
स्वयं से बिछड़कर।

आकिब जावेद

Before raindrops fell to earth
Travels many miles away
Let's part in this journey of her
Such companions who make promises
To be together till the earth
But the separation is fixed.

Because
Drops separating from themselves
The remaining remains equal to the particle.
At last
To leave the vairagi world
You have to meet in the other
Separating from myself.

Akib Javed

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8 टिप्पणियाँ

  1. जीवन का परम सत्य। बखूबी कह डाला आपने। बूंद में सागर।

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