आज की कविता आकिब जावेद के साथ

मनुष्य ने
ओढ़ा हुआ है
मनुष्यता का लबादा।
उतारकर फेंक देता है,
मौका मिलते ही
और बन जाता है
जानवर
क्रूर, वहसी,जंगली
समाज ने
कम्फर्ट जोन
बना लिया है।

आकिब जावेद

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