वर्ष और घर-द्वार बदलते देखें हैं
जां से प्यारे यार बदलते देखें हैं।
देखा है दिल पे कुछ होठों पे कुछ
पल-पल किरदार बदलते देखें हैं।
नफ़रत देखी,देखा हमने प्यार
चेहरे सौ-सौ बार बदलते देखें हैं।
हर बार उसे अपना समझा जाना
लेकिन बारम्बार बदलते देखें हैं।
मुझे तोड़कर वो खुद कितना रोया
उल्फ़त के बीमार बदलते देखें हैं।
✍️आकिब जावेद
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