नज्म-माँ की ममता सा नही देखा कोई अपना

माँ

माँ  की  ममता  सा  नही  कोई  भी  देखा अपना
खून  के  आँसू  से  औलाद  भी  पाला  अपना
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पोछने  को  नही  आता  यहाँ  कोई  आँसू
कौन  है  माँ  के  सिवाए  हमें  कहता  अपना
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देखता  तक  नही  औलाद  वो  जो  साहब  हो कर
माँ  ने  औलाद  पे  घर - बार  लुटाया  अपना
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ये  घरौंदा  जो  बसाया  पसीने  से  उसने
परवरिश  में  माँ  ने  सब  कुछ  तो  लुटाया अपना
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बोल  दो  प्यार  से  तुम  भी  यूँ  कभी  बोले  हो
माँ  के  जैसा  न  मिलेगा  यहाँ  सच्चा  अपना 
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माँ  भी  तकलीफों  को  सह  लेती  है  हँस हँस कर के
दर्द  में  माँ  के  अलावा  नही  दूजा  अपना
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रखकर  फ़ाक़ा  जिसने  दी  है  उड़ान  ये 'आकिब'
हूँ  माँ  के  आगे  मैं  भी  सर यूँ झुकाता  अपना
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आकिब जावेद
बाँदा(उ.प्र.)

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2 टिप्पणियाँ

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (04 मई 2020) को 'ममता की मूरत माता' (चर्चा अंक-3698) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    *****
    रवीन्द्र सिंह यादव

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