कविता : अरावली पर्वत श्रेणी
धरती की बूढ़ी आँखों में
इतिहास की गहरी रेखाएँ,
अरावली खड़ी मौन तपस्वी-सी
सदियों की कथा सुनाएं।
पत्थर-पत्थर में स्मृति जगी,
वनों में साँसें पुरखों की,
मरु को हरियाली देने वाली
यह ढाल है जीवन स्वप्नों की।
ऋषियों की धूनी,तपोस्थली है
युद्धों की गूँज, शांति की खान
अरावली ने सब कुछ सहकर
राष्ट्र का सदैव रखा है मान।
आज पुकारे वह मौन स्वर में
अरे मत काटो मेरी हरियाली,
मैं रहूँ तो जल,जीवन,भविष्य
तुम सबकी हो साँसें निराली।
धरती की सबसे पुरानी धड़कन,
अरावली श्रेणी अमर कहानी
जो बची रही तो बचेगा मानव,
नहीं तो सूनी होगी जवानी।
आकिब जावेद

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