कस्ती डगमगा हो!!

दगा करके जो दुआ देते हो,
जैसे अब कोई काँटा चुभा हो।।

मिलते ही मुस्कुरा देते हो,
जैसे मिलने का आसरा हो।।

गर काँटा कोई फूलो के बीच चुभा हो
खुश्बू भी फैलाता हैं,यूँ ऐसे फायदा हो।।

कहाँ होती हैं मोहब्बत आसाँ रास्तो पर
कुछ दिल में अब दबा,बुझा,लुटा,संमा हो।।

वो फासला अब दो जानो के दरमिंया
जैसे कोई अनकहा अब बुझा दिया हो।।

वो इंतज़ार का वक्त,और आती उनकी याद
आँखे थक गयी,जैसे डाकिया खत लाता हो।।

तुम्हे तो मिल गया होगा अब कोई साथी नया
हमारा हाल तो ऐसा हैं,जैसे कस्ती डगमगा हो।।

प्यार के नग़मे सुनाये,चले आओ बहारे दिखाये
अब कँही हुस्न की वादियों में अपना झोपड़ा हो।।

®आकिब जावेद

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