आज की शायरी

फ़ितरत उसकी समझ रहा हूँ।।
फिर भी  उससे उलझ रहा हूँ।।

हक़ - बातिल  के इस जंग में।।
हक़ साथ निभा फ़र्ज़ रहा हूँ।।

-आकिब जावेद

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