इमारत है ये

*इमारत है ये*

झूठ,फरेब,मक्कारी से दूर
स्वार्थ,अज्ञानता,तिरस्कार को भूल
सबकी सुनें,किसी से कुछ ना कहे
इमारत हैं ये,
सदियों से ऐसी ही रहें!
कई राज़ों को खुद में समेटे
पीढ़ियों को सामने से देखे
गुज़रती चली जा रही हैं ये
इमारत हैं ये,
सदियों से ऐसी ही रहे!
किसी ने चोट पहुंचाई
किसी ने मरम्मत करवाई
किसी ने की खूब लड़ाई
प्यार,स्नेह,लाड़ भी पाई
सबकी सुनें,किसी से कुछ ना कहे,
इमारत हैं ये
सदियों से ऐसी ही रहें!
बनाया हैं एक इमारत
स्वयं करूणानिधि ने भी
स्त्री और पुरुष के मेल से
झूठ,फरेब,अज्ञानता से रखें खुद को दूर
यही यह शाश्वत इमारत है
जिधर से चलता रहता है
जीवन-मरण का विधान
सृष्टि के रहने तक।
ये शरीर भी इमारत हैं एक
सदियों से ऐसी ही रहें!
अब हमें करना ईश्वर प्रदत्त
इमारत का सद्कर्म,सद्गुणो से
रख रखाव,ताकि सुरक्षित हो सके
ये जीवन हमारा जन्म-जन्मान्तर तक,
इमारत है ये
सदियों से ऐसी ही रहें!!

®आकिब जावेद

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2 टिप्पणियाँ

  1. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ०७ जनवरी २०१९ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।



    आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'

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