मुक्त कविता : बंदिशें

एक स्त्री को
एक रोटी का टुकड़ा 
तोड़ने के लिए

तोड़नी पड़ती है..
न जाने कितनी
बंदिशे।

पुनः उन्ही बंदिशों
में बंधने के लिए।

आकिब जावेद


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