राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जीवन और उनके संघर्ष के तरीके आज भी लोगों को प्रभावित करते हैं। किसी व्यक्ति की महानता का एहसास तब होता है जब उसका जीवन लोगों को बेहतरी के लिए प्रेरित करता है और महात्मा गांधी का जीवन भी ऐसा ही था। उनकी मृत्यु के दशकों बाद, उनके बारे में पढ़कर लोगों ने अपने जीवन में आमूल-चूल परिवर्तन किए।
प्रारंभिक जीवन
महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर नामक छोटे से नगर में हुआ था। पोरबंदर उस समय बंबई प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश भारत के तहत एक छोटी सी रियासत काठियावाड़ में कई छोटे राज्यों में से एक था।उनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। उनके पिता करमचंद गांधी पोरबंदर रियासत के दीवान थे और माता पुतलीबाई अत्यंत धार्मिक, सरल और सहनशील स्वभाव की महिला थीं। गांधीजी का बचपन धार्मिक वातावरण में बीता। उनकी माता व्रत-उपवास, पूजा-पाठ और परोपकार के कार्यों में गहरी आस्था रखती थीं, जिसका प्रभाव गांधीजी के व्यक्तित्व पर गहराई से पड़ा।
गांधीजी बचपन में सामान्य छात्र थे, लेकिन ईमानदारी, सादगी और अनुशासन के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने शुरुआती शिक्षा पोरबंदर और राजकोट में प्राप्त की। 13 वर्ष की आयु में उनकी शादी कस्तूरबा मकनजी से हुई, जिन्हें प्यार से "बा" कहा जाता था।उनके चार पुत्र हुए: हरिलाल, मणिलाल, रामदास और देवदास। 1944 में अपनी मृत्यु तक उन्होंने अपने पति के सभी कार्यों में सहयोग दिया।
शिक्षा
गांधीजी ने मैट्रिक की पढ़ाई राजकोट से पूरी की।वो सात वर्ष के थे जब उनका परिवार राजकोट (जो काठियावाड़ में एक अन्य राज्य था) चला गया जहॉं उनके पिता करमचंद गांधी दीवान बने। उनकी प्राथमिक शिक्षा राजकोट में हुई और बाद में उनका दाखिला हाई स्कूल में हुआ। हाई स्कूल से मैट्रिक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद गांधी जी नें समलदास कॉलेज, भावनगर में दाखिला लिया। इसी बीच 1885 में उनके पिता की मृत्यु हो गयी। जब गांधी जी इंग्लैंड जाने हेतु नाव लेने के लिए मुंबई गए, तब उनकी अपनी जाति के लोगों नें जो समुद्र पार करने को संदूषण के रूप देखते थे, उनके विदेश जाने पर अडिग रहने पर उन्हें समाज से बहिष्कृत करने की धमकी दी। लेकिन गांधीजी अड़े हुए थे और इस तरह औपचारिक रूप से उन्हें अपनी जाति से बहिष्कृत कर दिया गया। बिना विचलित हुए अठारह साल की उम्र में 4 सितम्बर, 1888 को वो साउथेम्प्टन के लिए रवाना हुए इसके बाद वे उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड गए। 1888 में गांधीजी लंदन पहुँचे और वहां "इनर टेम्पल" से वकालत की पढ़ाई की। इंग्लैंड में रहते हुए उन्होंने अंग्रेजी भाषा, पश्चिमी संस्कृति और कानून का गहन अध्ययन किया।
लंदन में शुरूआती कुछ दिन काफी दयनीय थे। लंदन में दूसरे वर्ष के अंत में, उनकी मुलाकात दो थियोसोफिस्ट भाइयों से हुई जिन्होनें उन्हें सर एडविन अर्नोल्ड के मिलवाया जिन्होंनें भगवद गीता का अंग्रेजी अनुवाद किया था। इस प्रकार सभी धर्मों के लिए सम्मान का रवैया और उन सबकी अच्छी बातों को समझने की इच्छा उनके दिमाग में प्रारंभिक जीवन में घर कर गयी थी।
इसी दौरान वे अनेक धार्मिक और दार्शनिक ग्रंथों से प्रभावित हुए। विशेष रूप से भगवद्गीता, बाइबिल, और तुलसीदास की रामचरितमानस ने उनके जीवन की दिशा तय की। उन्होंने सादा जीवन, उच्च विचार को अपनाया और शाकाहार को दृढ़ता से जीवन का हिस्सा बनाया।
दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष
1891 में गांधीजी भारत लौटे और वकालत शुरू की, लेकिन अधिक सफलता नहीं मिली। 1893 में उन्हें एक भारतीय व्यापारी के मुकदमे के लिए दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। यह यात्रा उनके जीवन का निर्णायक मोड़ साबित हुई।दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी को नस्लीय भेदभाव का सामना करना पड़ा। एक बार ट्रेन में प्रथम श्रेणी का टिकट होने के बावजूद उन्हें "गैर-श्वेत" कहकर धक्के मारकर बाहर निकाल दिया गया। इस घटना ने उनके भीतर अन्याय के खिलाफ लड़ने की आग जलाई।गांधीजी ने वहाँ भारतीयों के अधिकारों के लिए संघर्ष शुरू किया। उन्होंने सत्याग्रह और अहिंसा की नीति अपनाई। 20 वर्षों तक दक्षिण अफ्रीका में रहकर उन्होंने रंगभेद और अन्याय के खिलाफ कई आंदोलन चलाए।
दक्षिण अफ्रीका में लगभग 20 वर्षों तक, महात्मा गांधी ने अहिंसक तरीके से अन्याय और नस्लीय भेदभाव के विरुद्ध संघर्ष किया। उनकी सादगीपूर्ण जीवनशैली ने उन्हें भारत और दुनिया भर में प्रशंसक दिलाए। वे बापू (पिता) के नाम से प्रसिद्ध थे।
भारत वापसी और आज़ादी की लड़ाई
1915 में गांधीजी स्थायी रूप से भारत लौट आए और गोपाल कृष्ण गोखले को अपना गुरु बनाकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए।गांधीजी की पहली बड़ी उपलब्धि 1918 में बिहार और गुजरात के चंपारण और खेड़ा आंदोलन का नेतृत्व करते हुए मिली। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, स्वराज और भारत छोड़ो आंदोलन का भी नेतृत्व किया।
उनके आदर्श और कार्यशैली ने भारतीय जनता को तुरंत आकर्षित किया। उन्हें जल्द ही भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का नेता माना जाने लगा।
चंपारण आंदोलन (1917)
गांधीजी का पहला बड़ा आंदोलन चंपारण, बिहार में हुआ। यहाँ अंग्रेज किसानों से नील की खेती जबरन करवा रहे थे। गांधीजी ने किसानों का साथ दिया और शांतिपूर्ण आंदोलन चलाया। अंततः अंग्रेज सरकार को झुकना पड़ा।
खेड़ा सत्याग्रह (1918)
गुजरात के खेड़ा जिले में अकाल के कारण किसान कर माफ़ी की मांग कर रहे थे। गांधीजी ने किसानों का नेतृत्व किया और अंग्रेजों को कर माफ करने पर मजबूर किया।
अहमदाबाद मिल हड़ताल
अहमदाबाद की कपड़ा मिलों के मजदूर कम वेतन और शोषण से परेशान थे। गांधीजी ने उनका नेतृत्व किया और सफलतापूर्वक वेतन वृद्धि दिलवाई।
असहयोग आंदोलन (1920)
गांधीजी ने पूरे देश को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल करने के लिए असहयोग आंदोलन शुरू किया। उन्होंने जनता से विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करने, सरकारी नौकरियों और पदों से त्यागपत्र देने, और अंग्रेजी संस्थानों का बहिष्कार करने का आह्वान किया।
इस आंदोलन ने देशभर में जागरूकता फैलाई, लेकिन चौरी-चौरा कांड (1922) में हिंसा हो जाने पर गांधीजी ने आंदोलन वापस ले लिया।
नमक सत्याग्रह और दांडी यात्रा (1930)
गांधीजी का सबसे प्रसिद्ध आंदोलन नमक सत्याग्रह था। अंग्रेजों ने नमक पर कर लगाया था, जिसे अन्यायपूर्ण माना गया। गांधीजी ने 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से दांडी तक 240 मील लंबी यात्रा की और समुद्र तट पर नमक बनाकर अंग्रेजी कानून का उल्लंघन किया।यह आंदोलन विश्वभर में प्रसिद्ध हुआ और अंग्रेजी साम्राज्य को हिला दिया।
भारत छोड़ो आंदोलन (1942)
द्वितीय विश्वयुद्ध के समय गांधीजी ने अंग्रेजों से साफ शब्दों में कहा – भारत छोड़ो। 8 अगस्त 1942 को मुंबई के "ग्वालिया टैंक मैदान" में उन्होंने "करो या मरो" का नारा दिया। इसके बाद वे गिरफ्तार कर लिए गए, लेकिन आंदोलन ने पूरे देश में स्वतंत्रता की ज्वाला भड़का दी।
गांधीजी के विचार और सिद्धांत
महात्मा गांधी ने अपने जीवन में कई महत्वपूर्ण सिद्धांत अपनाए, जिनसे उन्होंने पूरे विश्व को प्रेरित किया।
1. सत्य (Truth) – उनके लिए सत्य ही ईश्वर था।
2. अहिंसा (Non-violence) – उनका मानना था कि हिंसा से स्थायी समाधान संभव नहीं है।
3. सत्याग्रह (Satyagraha) – अन्याय के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रतिरोध।
4. सादा जीवन, उच्च विचार – विलासिता से दूर रहकर आत्मसंयम।
5. स्वदेशी – विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार और देशी वस्तुओं का प्रयोग।
6. सर्व धर्म समभाव – सभी धर्मों को समान मानना और उनके मूल्यों का सम्मान करना।
महात्मा गांधी: साहित्यिक कृतियाँ
गांधीजी एक विपुल लेखक थे। उनकी कुछ साहित्यिक रचनाएँ इस प्रकार हैं:
• हिंद स्वराज, 1909 में गुजराती में प्रकाशित।
• उन्होंने कई समाचार पत्रों का संपादन किया जिनमें गुजराती, हिंदी और अंग्रेजी भाषा में हरिजन; अंग्रेजी में इंडियन ओपिनियन, यंग इंडिया और गुजराती मासिक नवजीवन शामिल थे।
• गांधीजी ने अपनी आत्मकथा, सत्य के साथ मेरे प्रयोगों की कहानी भी लिखी।
• उनकी अन्य आत्मकथाओं में शामिल हैं: दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह, हिंद स्वराज या भारतीय स्वराज्य।
सामाजिक सुधार
गांधीजी केवल स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं, बल्कि सामाजिक सुधारक भी थे। उन्होंने छुआछूत, अस्पृश्यता और जाति भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई। वे दलितों को "हरिजन" कहते थे। उन्होंने महिला सशक्तिकरण और ग्रामीण स्वराज पर भी जोर दिया।
महात्मा गांधी: पुरस्कार
• 1930 में , गांधीजी को टाइम पत्रिका द्वारा मैन ऑफ द ईयर नामित किया गया था।
• 2011 में , टाइम पत्रिका ने गांधी को सर्वकालिक शीर्ष 25 राजनीतिक प्रतीकों में से एक बताया।
• 1937 और 1948 के बीच पांच बार नामांकित होने के बावजूद उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिला।
• भारत सरकार ने प्रतिष्ठित सामाजिक कार्यकर्ताओं, विश्व नेताओं और नागरिकों को वार्षिक गांधी शांति पुरस्कार प्रदान करने की शुरुआत की है। दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के विरुद्ध संघर्ष के नेता नेल्सन मंडेला भी इस पुरस्कार के प्राप्तकर्ता थे।
"खुशी तब होती है जब आप जो सोचते हैं, जो कहते हैं और जो करते हैं, सबमें सामंजस्य हो।" - महात्मा गांधी
विभाजन और अंतिम दिन
1947 में भारत को आज़ादी मिली, लेकिन इसके साथ ही भारत का विभाजन हुआ। हिंदू-मुस्लिम दंगों से गांधीजी बहुत दुखी हुए। वे देश की एकता और भाईचारे के लिए अंतिम समय तक प्रयत्नशील रहे।
मृत्यु
मोहनदास करमचंद गांधी की 30 जनवरी 1948 को नई दिल्ली में प्रार्थना सभा के दौरान नथूराम गोडसे ने गोली मारकर हत्या कर दी। उनकी अंतिम शब्द थे – "हे राम!" गोडसे एक हिंदू राष्ट्रवादी और हिंदू महासभा का सदस्य था। उसने गांधी पर पाकिस्तान का पक्ष लेने का आरोप लगाया था और अहिंसा के सिद्धांत का विरोधी था।
गांधीजी की विरासत
महात्मा गांधी केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा बने। मार्टिन लूथर किंग जूनियर, नेल्सन मंडेला और कई अन्य नेताओं ने गांधीजी के अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों से प्रेरणा पाई।
निष्कर्ष
आज भी उनका जन्मदिन 2 अक्टूबर "गांधी जयंती" के रूप में मनाया जाता है और इसे अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस भी घोषित किया गया है।
महात्मा गांधी का जीवन त्याग, सेवा, सत्य और अहिंसा का प्रतीक है। उन्होंने दिखाया कि बिना हथियार उठाए भी आज़ादी जीती जा सकती है। उनके विचार और सिद्धांत आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने स्वतंत्रता संग्राम के समय थे।
गांधीजी का जीवन यह संदेश देता है कि –
"सत्य और अहिंसा ही सबसे बड़ी शक्ति है, जो दुनिया को बदल सकती है।"
आकिब जावेद,कवि/लेखक
Biography of Mahatma Gandhi
The life of the Father of the Nation, Mahatma Gandhi, and his methods of struggle still inspire people today. The greatness of a person is realized when his life motivates others to improve, and Mahatma Gandhi’s life was just like that. Even decades after his death, reading about him has brought deep changes in people’s lives.
Early Life
Mahatma Gandhi was born on 2 October 1869 in a small town called Porbandar, Gujarat. At that time, Porbandar was a small princely state in Kathiawar, under the Bombay Presidency of British India. His full name was Mohandas Karamchand Gandhi. His father, Karamchand Gandhi, was the Diwan of Porbandar state, and his mother, Putlibai, was a deeply religious, simple, and tolerant woman. Gandhi grew up in a religious environment. His mother’s devotion to fasting, worship, and charity left a lasting impression on his personality.
In childhood, Gandhi was an average student, but he was known for honesty, simplicity, and discipline. He received his early education in Porbandar and Rajkot. At the age of 13, he was married to Kasturba Makhanji, affectionately called “Ba.” They had four sons – Harilal, Manilal, Ramdas, and Devdas. Kasturba supported her husband in all his endeavors until her death in 1944.
Education
Gandhi completed his matriculation from Rajkot. Later, his family moved to Rajkot where his father became the Diwan of the state. Gandhi enrolled at Samaldas College in Bhavnagar, but his studies were interrupted after the death of his father in 1885.
Despite opposition from his community (who believed crossing the sea was impure), Gandhi was determined to go abroad. At just 18 years old, on 4 September 1888, he set sail for England. There he joined the Inner Temple, London, to study law.
Life in London was difficult at first. Later, Gandhi was introduced to religious and philosophical texts such as the Bhagavad Gita, the Bible, and Tulsidas’ Ramcharitmanas, which deeply influenced him. He embraced simple living, high thinking, and vegetarianism as guiding principles of his life.
Struggle in South Africa
In 1891, Gandhi returned to India as a barrister but could not find much success in his practice. In 1893, he went to South Africa to handle a legal case for an Indian trader. This journey changed the course of his life.
There, Gandhi faced racial discrimination. In one incident, despite holding a first-class ticket, he was thrown out of a train because he was considered “non-white.” This humiliation awakened in him a resolve to fight against injustice.
He stayed in South Africa for 20 years, fighting against racial discrimination through non-violence (Ahimsa) and Satyagraha (peaceful resistance). His simplicity and determination earned him admiration both in India and abroad. It was here that he became known as “Bapu” (Father).
Return to India and Freedom Struggle
Gandhi returned to India in 1915 and joined the Indian National Congress under the guidance of Gopal Krishna Gokhale. Soon, he emerged as a leader of the freedom struggle.
Champaran Satyagraha (1917)
In Bihar, British landlords forced farmers to grow indigo. Gandhi led a peaceful protest, and eventually, the British relented.
Kheda Satyagraha (1918)
In Gujarat, famine-stricken farmers demanded tax relief. Gandhi supported them, and the British government was forced to reduce taxes.
Ahmedabad Mill Strike
Gandhi successfully mediated in favor of textile mill workers, ensuring them better wages.
Non-Cooperation Movement (1920)
Gandhi called for a nationwide boycott of British goods, schools, jobs, and institutions. The movement awakened mass consciousness, but he suspended it after the Chauri Chaura incident (1922) due to violence.
Salt March and Dandi Yatra (1930)
Gandhi launched the historic Salt Satyagraha against the unjust salt tax. On 12 March 1930, he began a 240-mile march from Sabarmati Ashram to Dandi, where he made salt illegally. This shook the British Empire and gained worldwide recognition.
Quit India Movement (1942)
During World War II, Gandhi demanded the British to “Quit India”. On 8 August 1942, at the Gowalia Tank Maidan in Mumbai, he gave the slogan “Do or Die.” He was arrested, but the movement spread like wildfire.
Gandhi’s Ideals and Principles
1. Truth (Satya) – “Truth is God.”
2. Non-violence (Ahimsa) – Violence cannot bring permanent solutions.
3. Satyagraha – Peaceful resistance against injustice.
4. Simple Living, High Thinking – Self-restraint and humility.
5. Swadeshi – Use of indigenous products, boycott of foreign goods.
6. Religious Harmony – Respect for all religions.
Literary Works
Gandhi was also a prolific writer. Some of his works include:
Hind Swaraj (1909)
Autobiography: The Story of My Experiments with Truth
Satyagraha in South Africa
He also edited newspapers such as Indian Opinion, Young India, Harijan, and Navjivan.
Social Reforms
Gandhi was not only a freedom fighter but also a social reformer. He opposed untouchability and caste discrimination, calling Dalits “Harijans” (Children of God). He worked for women empowerment and rural self-reliance (Gram Swaraj).
Awards and Recognition
Named Time Magazine’s Man of the Year (1930).
Listed among the Top 25 Political Icons of All Time by Time in 2011.
Nominated for the Nobel Peace Prize five times but never received it.
The Government of India established the Gandhi Peace Prize in his honor.
Partition and Last Days
In 1947, India gained independence, but the partition of India and Pakistan led to communal violence. Gandhi was deeply saddened and worked tirelessly for peace and unity.
Death
On 30 January 1948, in New Delhi, Gandhi was assassinated by Nathuram Godse, a Hindu nationalist, during a prayer meeting. Gandhi’s last words were “Hey Ram!”
Legacy
Mahatma Gandhi remains a global icon of truth, non-violence, and peace. Leaders like Martin Luther King Jr. and Nelson Mandela drew inspiration from his principles of Satyagraha and Ahimsa.
His birthday, 2 October, is celebrated as Gandhi Jayanti in India and recognized as the International Day of Non-Violence by the United Nations.
Conclusion
Mahatma Gandhi’s life is a symbol of sacrifice, service, truth, and non-violence. He proved that freedom can be won without weapons. His teachings remain as relevant today as they were during the independence struggle.
“Truth and Non-violence are the greatest powers that can change the world.” – Mahatma Gandhi
Presentation
Aqib Javed, Poet/Writer
Banda, Uttar Pradesh
📞 9506824464
4 टिप्पणियाँ
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 2 अक्टूबर 2025 को लिंक की जाएगी है....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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बहुत बहुत आभार आपका।गांधी जयंती एवं लाल बहादुर शास्त्री जयंती की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 💐💐♥️🙏
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आपका।गांधी जयंती एवं लाल बहादुर शास्त्री जयंती की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 💐💐♥️🙏
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