कविता

गर्म तवे पे मक्के के बीज 
ऐसे उछलते है 
जैसे उछलते हों 
रीढ़विहीन व्यक्ति।
लेकिन बनता है मक्का पॉपकॉर्न
रीढ़विहीन चापलूस बन कर खुश है।

आकिब जावेद

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