कविता

शांत चित्त
एकांत मन
पावन अंग 
मन में उमंग
निर्मल धरा
उमंग भरा
नीर क्षीर
ध्वस्त जागीर
निर्बल राह 
प्रबल प्रवाह
ठोकर में धन 
सबल है मन
जादू की पुड़िया
निर्धन की दुनिया
बन सज्जन
दूर रहे दुर्जन
मीठे है बोल
दुनिया गोल
व्यक्तित्व का नही 
कोई मोल।

आकिब जावेद 

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