गरीबों को कपड़े मिठाई दिलाएँ,
दिवाली मनाएं खुशियाँ लुटाएँ।
सभी अपने -अपने घरों को सजाएँ,
जमी हुई रौशन जहाँ जगमगाएँ।
करें नफ़रतों को जहाँ से रवाना,
चलो प्यार का दीप हम भी जलाएँ।
सभी मिलके कँधे से कँधा मिला ले,
बुराई मिटाएँ मुहब्ब्त निभाएँ।
हंसी ज़ीस्त की तो यही आरज़ू है,
घने अँधेरे में दीया इक जलाएँ।
चलो आज भूखें को खाना खिला दे,
किसी भूखें की भूख हम भी मिटाएँ।
सभी को गले से चलो अब लगा ले,
ग़रीबो की मिलके सभी ले दुआएँ।
-आकिब जावेद
4 टिप्पणियाँ
बहुत खूबसूरत 👌🏻
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया सर
हटाएंबहुत खूबसूरत लिखते हैं भाई, एक -एक लफ्ज़ को बहुत अच्छे से पिरोते हैं
जवाब देंहटाएंआपकी इतनी प्यारी प्रतिक्रिया के लिए बहुत ममनून हूँ,सलामत रहे आप
हटाएंThanks For Visit My Blog.