1222.1222.122
हमे क्या क्या नही वो बोलता है
सुना है हाल वो भी पूछता है
सुना है दर्द में वो जी रहा अब
लहू के अश्क़ अपने पोंछता है
रुके तो हाल उनसे पूछ ले हम
वो आते-जाते ही घर देखता है
बना ली दूरियाँ उसने बहुत ही
सुना है ख़्वाब भी कम देखता है
रुकेगी गर्दिशे भी ज़िन्दगी में
हवा का रुख़ ख़ुदा ही मोड़ता है
सुलगते-चीखते वीरान दिल में
कई होंगे वो मंज़र सोचता है
शमा रोशन हुई मेरे भी दिल की
ख़ुदा दिल को ही आकिब' देखता है।
*-आकिब जावेद*
1 टिप्पणियाँ
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंविजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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