ग़ज़ल- सुना है ख़्वाब भी कम देखता है


1222.1222.122

हमे क्या क्या नही वो बोलता है
सुना  है  हाल  वो  भी पूछता है

सुना  है दर्द  में वो जी रहा अब
लहू के अश्क़ अपने पोंछता है

रुके तो हाल उनसे पूछ ले हम
वो आते-जाते ही घर देखता है

बना ली दूरियाँ उसने बहुत ही
सुना है ख़्वाब भी कम देखता है

रुकेगी गर्दिशे भी ज़िन्दगी में
हवा का रुख़ ख़ुदा ही मोड़ता है

सुलगते-चीखते वीरान दिल में
कई होंगे वो मंज़र सोचता है

शमा रोशन हुई मेरे भी दिल की
ख़ुदा दिल को ही आकिब' देखता है।

*-आकिब जावेद*

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