मुक्तक :

करत  है अपनों  काम  जग  मा
कर्मण से  है  अब  नाम  जग मा
मात - पिता का तू भी सेवक बन
पूण्य है चारों तीरथ धाम जग मा

हैरान  हुआ  देख  कर  रुसवाई
जग  में  होती  है  कैसी  हँसाई
अंतस  के  बंधन  में  बंधू  कैसे  
ये  जग  है  तो  मुर्ख  पीर पराई

मेरो  दाता  देतो है  सब  दाना पानी
जग  में  लगो है सबको आना जानी
क्या खोया क्या पाया तू इस जग में
क्या करेगा करके सबसे ताना तानी

-आकिब ज़ावेद




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