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🌿 मतला
मौत सर पे जब यूं खड़ी होगी
ज़िंदगी से बहुत ठनी होगी
भूल जाती है साथ में सबके
भीड़ में तन्हा ढूँढती होगी
ज़िंदगी को तलाश करते
ज़िंदगी क्या उसे मिली होगी
जब सफ़र से मैं आ रहा हूँगा
माँ यूं दरवाज़े में खड़ी होगी
पास है दूर फिर भी सबसे अब
ज़िंदगी भी डरी - डरी होगी
इस वबा ने उजाड़े घर के घर
बेवफ़ाई किसी ने की होगी
सब्र को मेरे आज़माता है
उनके आने की लौ लगी होगी
दूर नज़रों से रहते हुए यूं
उम्र भी अब गुज़र रही होगी
-आकिब जावेद
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