मुक्तक : मंजिल

कदम दर कदम चलते गए
बुलंद हौसलों से बढ़ते गए
ज़ुनून है कुछ कर गुज़रने का
खुद के डर से यूँ लड़ते गए

-आकिब जावेद

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