कविता - सवाल

परेशानी में 
खोया हुआ
सड़कों पर
सोया हुआ

जाति-धर्म 
भूला हुआ
भुखमरी में
झूला हुआ

पथराई आँख
करती इंतज़ार
सिकुड़ी आँत
करती गुहार

व्यथित शरीर
अकिंचन दरिद्र
खाली बैठा है
हुआ बेरोजगार

वो कैसे खाए
खाना कहाँ से आए
मन में उमड़ रहे
बार बार सवाल

कोई आके अब
इनको देख ले
इनके भी हाल!

#akib

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