ख़ामोशी!
हा एक ख़ामोशी पसरी हुई है अब,
जैसे लबो पर मातम मना रहा कोई
आँखों के सामने आवाजें गुज़र रही
चींख चींख के सुन रहे हो जैसे सब
कि हमारे लब सिल दिए गए है अब
कि कलम पड़ गयी हो ठंडी हमारी
भुला दिए जाओगे अब सब के सब
हा एक ख़ामोशी पसरी हुई है अब
-आकिब जावेद
2 टिप्पणियाँ
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-१ हेतु नामित की गयी है। )
जवाब देंहटाएं'बुधवार' ०४ मार्च २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
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बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंThanks For Visit My Blog.