हवा सोच रही दवा को- कविता

हवा सोच रही दवा को
देख रही नज़ारे धरा में
ज़हरीली हो गई है हवा
लेना होगा सबको दवा
ग़र न चेते समय से हम
नज़र न आयेगी ये धरा
हरे भरे वृक्षो को काटे
तमस सबको मारे चाटे
कंक्रीट के तो वृक्ष लगे
न देगे पाएंगे शुद्ध हवा
चाहे लेले ए. सी,कूलर
मानुष तू जो लगवाले
मिलेगी नही शुद्ध हवा
मिलके आओ वचन ले
प्रकृति की हम हवा ले
धरा को हरा भरा करले

-आकिब जावेद

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