दिसम्बर- कविता

बीते  हुए  लम्हो  को  समेटे
खट्टी  मीठी  याद  को लपेटे
हँसी ख़ुशी विदाई माँग रहा है
शायद जल्दी में है जाने की,और
बाहें फैलाए है नए के आने की
नई उम्मीद की किरण,रौशनी
कुछ पाने की,कुछ आने की
गिले - शिकवे  भूल  कर हो
नई  शुरूआत  ज़िन्दगी  में,
क्यों कि फिर होगा दिसम्बर
वो फिर करेगा हिसाब हमसे
हर दिसम्बर तुम क्या खोये,
और तुम क्या पाये हो भाई!!

✍️आवाज़

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