इश्क मुहबबत से यूँ  घर गुलज़ार हो गया है!!ग़ज़ल

221  2122  221  2122

देख अब दिल मेरा कितना लाचार हो गया है
बिन तेरे अब ज़िन्दगी जीना दुश्वार हो गया है

बना  बावरा  फिरता मन  यूँ अब  गली  गली
बिन महबूब सुना दिल,अब बेज़ार हो गया है

चिरागा  जलाया  था कभी  इश्क  का हमने
ख़ामख़ा बेवफ़ाई में तुम्हारे बेकार हो गया है

सुना है  पतझड़ भी आते  है ज़िन्दगी में भी
इश्क मुहबबत से यूँ  घर गुलज़ार हो गया है

तुम्हें  प्यार  नहीं   करता   मैं   कैसे  मन लूँ
मोहब्बत का भी अब यहाँ व्यापार हो गया है

छिपी  बेबसी  क़लबो में ख़ामोशियो के सँग
चाहते दिलों का,आकिब"इकरार हो गया है।

-आकिब जावेद

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