हर चेहरे में यहाँ नकाब देखे हैं
लोगो को होते बेनकाब देखे हैं।।
वो बारिश का दौर ही और हैं
जब हर मौसम गुलज़ार देखे हैं।।
कागज की नाव लिये तैयार बैठे हैं
आते खूब तुफानो के बवंडर देखे हैं।।
शीशे के घर में रहने वालों के हाथों में
दुसरे के घरों में मारते पत्थर देखे हैं।।
लोकतंत्र में अब खूब होते हमले
यहाँ वोट के सब खरीददार देखे हैं।।
होती यहाँ सियासत अब जवानों पर
सरहद में शहीद होते वो मंज़र देखे हैं।।
भोली भाली जनता को बेवकूफ बनाते
अकड़कर सीना ताने अफसर देखे हैं।।
साधू,जोगी हो या कि अल्हड़ कोई फ़कीर
आकिब'सब होते सियासत से दूर देखे हैं।।
®आकिब जावेद
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