बेज़ुबानों में भी ज़ुबान देखे हैं
अंधों में भी अब नज़र देखे हैं।।
बहरों को अब बुराई करते देखे हैं
गूँगों को करते अगर मगर देखे हैं।।
चुप्पी साधे रहते थे जो अब तक
लोगो को करते खूब बवंडर देखे हैं।।
अपनी बेबसी जो कही किसी से
लोगो को यहाँ बनते पत्थर देखे हैं।।
रंजो गम में डूबे किसी नज़र को
शहर दर शहर करते बसर देखे हैं।।
हर हाथ में खंज़र लिये
यहाँ कितने मंज़र देखे हैं।।
हर इंसा यहाँ खुद के खूँ का प्यासा
खंज़र छुपाये बैठे यहाँ नश्वर देखे हैं।।
खाली हाथ आया सिकंदर दुनिया में
उसका बनता बिगड़ता मुकद्दर देखे हैं।।
ये दुनिया सिवाये फानी कुछ भी नही
आकिब'ना जाने कितने सफर देखे हैं।।
®आकिब जावेद
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