एक ग़ज़ल।।माँ

ज़िन्दगी में जिसके माँ नही होती है
उनसे पूछो माँ की कमी क्या होती है।।

जब आफ़त मेरे सर पे आन पड़ती है
सिखाई माँ की सीख याद पड़ती है।।

आँधियों में भी चरागों को जलाये रखती हैं
माँ की दुआएँ खुद में इतना असर रखती है।।

माँ की सीख अब कड़वी लगती है
नया है ज़माना  नई  रौशनी  है।।

अनपढ़,गँवार है खूब चिल्लाती भी है
ज़िन्दगी की नई सीख सिखाती भी है।।

उनकी किस्मत नही रूठती उनसे कभी भी
ज़िन्दगी में करते काम,होती माँ की खुशी है।।

अपने खून से सींचती हैं,सँवारती पालती है
माँ की दुआओ से ही अब रौशन ये जिंदगी हैं।।

-आकिब जावेद





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