यहाँ उठते हैं ऊपर,लोग जमीर गिरा के
गिरते हैं अक्सर,आईने में नज़र मिला के
बनकर कठपुतली यहाँ लोगो के हाथों
करते चापलूसी,अपनी आत्मा गँवा के
दोष नही अब हवाओं का फ़िज़ा में कोई
खूब नफ़रतों का जहर,यहाँ रखा हैं फैला के
खबर नही खुद की,पड़ोसी की खबर लेते नही
ज़माने भर की खबर,खूब पढ़ते हैं दबा दबा के
इंसा सी शक्ल,हैवानो सा काम करते अब यहाँ
मासूम बच्ची की,अस्मिता लूटी बंधक बना के
घर का चूल्हा चौका ही यहाँ करवाते हैं सब
सपने हैं उनके,लड़कियों को देखो तुम पढ़ा के
बुनियाद अपनी कर लो मज़बूत,इज़्ज़त बचा लो
गंदगी को कर दो दूर 'आकिब'अब हया बचा के।।
®आकिब जावेद
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