आज़मा के।।ग़ज़ल

नज़र से नज़र मिलाया था,यूँ अरमाँ जगा के
भुला दिया हैं उन्होंने अपने दिल में बसा के

इश्क की इम्तिहाँ फ़ैली हुई हैं यहाँ दो जहाँ में
मुहब्बत को तुम्हारे देखना हैं जरा आज़मा के

अब सब्र की इंतिहा हद से हमारी गुज़र रही हैं
मिलो आसमानो में जुगनू की तरह टिमटिमा के

मेरी नज़र तुम्हारा असर,ख़ुमार कोई चढ़ा के
तसव्वुर तुम्हारा रोम रोम सिहरन गया चढ़ा के

मोहब्बत का फ़लसफा जो सुनाया था हमने
याद आते हैं वो लम्हे जब देखा था आज़मा के

प्यार कोई जुर्म तो नही,कि हमने ख़ता तो नही
बना इश्क का देवता,चला गया फ़लसफ़ा सुना के

सनम दिल के वफ़ा को जगाया वेदना जगा के
रूठो ना हमसे मान भी जाओ अब ख़ता भुला के

मिले थे हमसे कुछ यूँ वो रकीब बन कर
फ़क्त आज चल दिये अब दिल दुखा के

लाल साड़ी, माथे में बिंदिया,हाथो में कँगन
देखा करे हमको और चले गये भावना जगा के

रूठना छोडो हमसे,अब करो ख़ता माफ़ हमारी
आकिब'वो तो हवा हैं गयी अब तुम्हे आज़मा के

®आकिब जावेद

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