तेरी आँखों का सागर हो गया हूँ
दिल के खँडहर सा मंज़र हो गया हूँ
वो पत्ता टूटा,टूटकर जब डाली से
उस पत्ते की तरह मंज़र हो गया हूँ
घर में छोटा था,था इस कदर नाकारा
तेरी मोहब्बत से अब बेहतर हो गया हूँ
किसी की मुस्कुराहट में खुद को वार दूँ
नज़र पड़ने से कितना सूंदर हो गया हूँ
कुछ ना था,तेरे दर में आने से पहले
मिलके तुझसे पहले से बेहतर हो गया हूँ
आँखों को था फ़क्त,इस दिल का सहारा
वक्त,बेवक्त याद करके नश्तर हो गया हूँ
खुले बंजर में पडी रहती थी मेरी यूँ हस्ती
तेरे दस्तक देने से अब मैं छप्पर हो गया हूँ
सर्द रातो ने लिया ठण्ड को अपने आगोश में
तेरी सोहबत की गर्मी पे निछावर हो गया हूँ
तेरे इश्क ने मुझको,खुद में डुबोया इस कदर
खुदा ने मिलाया तुझसे,तेरा मुकद्दर हो गया हूँ
मिलना,बिछड़ना,यूँ पाना,खोना मुकद्दर की बाते
पाके तुझे आकिब'मुकद्दर का सिकंदर हो गया हूँ
-आकिब जावेद
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