चाहने वालो ने देखी,डूबी कस्ती हमारी एक दिन!!ग़ज़ल

ये जो हस्ती हमारी,बस्ती में दिखी एक दिन
चाहने वालो ने देखी,डूबी कस्ती हमारी एक दिन

हवा का रूख किधर हैं,चल रही किस जानिब
क्या हँसती,खेलती बस्ती को जलायेगी एक दिन

एक डर समाया दिल में हमारे,वो बरसो पुराना
जो दिल में समाये,क्या वो देगे रिहाई एक दिन

दर्द से कराहती एक हँसी उनके चेहरे पे
क्या जुबां से भी बताएंगे वो निशानी एक दिन

सच्ची मोहब्बत झलक जाती हैं,अक्सर चेहरे पे
बनावटी चेहरो की उदासी हैं दिखती एक दिन

झुठलाता रहा वो खुद को,खुल्क वली समझता रहा
ख़ुदाए पाक ने भी दिखाई खुली निशानी एक दिन

वो वक्त भी रहा,जिंदगी में जब फाका भी रहा
अब हमें भी ख़ुदा दिखायेगा खुशहाली एक दिन

मुश्किल बड़ी हैं, कस्ती भँवर में फंसी हैं
कोई फरिस्ता आके सँवारे हमारी भी जिंदगी एक दिन

खुशकिस्मत होते हैं वो लोग आकिब'जो रहते पास
दिल रोता हैं आकिब'जब होती हैं जुदाई एक दिन।।

-आकिब जावेद

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