सपनो का भारत
होती जुबा भी कुछ कहने के लिए,
ये दिल की बाते समझता नही है!
कुछ आरजू मन में दबी है,
कुछ की अब यहाँ बोली लगी है!
सच कोई यंहा सुनता नही अब,
जूठ फरेब की अब हलचल मची है!
हुआ सदा है फरेब यहाँ पर,
फिर भी सच बोलने की किसी की हिम्मत नही है!
धर्मो के नाम पर चढ़ती भावनाओ की बलियां,
सत्ता का नशा यूं उन पर चढ़ा है!
बात करने को कोई बढ़ता ना आगे,
नेताओ को तो अपनी सत्ता गवाने का डर है!
भारत को अपने खून पसीने से सींचो,
अत्याचारियो को अपने खून कंयू देने पर तुले हो!
आकिब देख तू भी अब क्या यंहा हो रहा है,
ये गांधी के सपनो का भारत नही हैं!!
-आकिब जावेद
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