कहानी-यात्रा और सीख


(3)               यात्रा और सीख

चारो तरफ चहल-पहल थी,दुकानों में भीड़ लगी हुई थी.शायद त्यौहार का मौसम था,लोग अपने अपने घरों की तरफ जा रहे थे,
सुनील जो की एक शहर में तैयारी करने गया था,वो भी त्यौहार में घर अपने जा रहा था,वह अपने कमरे में सब सामान अच्छे से रखा,मन ही मन सोच में की कंही कुछ छूट तो नही रहा,इसी उलझन में जल्दी से नहाकर खाना खा कर अपने कमरे से बाहर निकलता है और इधर उधर नजरे घूमाता है।
टैक्सी टैक्सी चिल्लाता है जो पास में ही टैक्सी वाला निकल रहा था,वो आता है, कंहा चलना हैं, यह टैक्सी वाला सुनील से पूछता हैं, 
अरे हड़बड़ाहट में चलो जल्दी से बसस्टैंड मेरी बस ना छूट जाये।
नही नही बाबु जी आपकी बस नही छूटेगी,इतना कह कर वो अपनी टैक्सी चलाना प्रारंभ कर देता हैं।
इसी बीच टैक्सी वाला सुनील से पूछता हैं, बाबु जी घर जा रहे है क्या?
हा कंयू तम्हे क्या करना है, इतना कह कर सुनील वह टैक्सी वाले को मुह बना कर उत्तर देता है।
कुछ नही बाबु जी ये कह कर टैक्सी वाला अपनी टैक्सी को चलाता है।
कभी कभी यह जिंदगी इतनी उलझी होती है कि हमें अपने आस-पास की चीज़े नही दिखाई देती हैं या फिर हम देखना ही नही चाहते हैं।
लेकिन जो कुछ भी हो ये जीवन को ऐसे उलझनों में नही बिताना चाहिए,ये सब दार्शनिक बाते वो ड्राइवर अपने मन ही मन बड़बड़ा रहा था।
तभी बसस्टैंड आ जाता है, बाबु जी बस स्टैंड आ गया यह कह कर ड्राइवर सुनील को हिला कर जगाता है,
हा हा ठीक है, सुनील पैसे देकर अपना सामान उतार कर चल देता है।
चारो तरफ भीड़ ही भीड़ बसों में सवारी ही सवारी हर तरफ शोरगुल वाला माहौल।
सब अपनी तरफ से आवाज लगा रहे कंहा चलना हैं, सुनील मन ही मन सोचता हैं, कितनी भीड़ हैं, लोग कितने आते और कितने जाते हैं, क्या होगा हमारे देश का लोगो को जनसँख्या नियंत्रण के उपाय के बारे में जरूर सोचना चाहिए।
इतना सब सोच ही रहा था कि उसके कानो में आवाज गूंजती है, बनारस बनारस चलो ,किसी को चलना तो नही हैं, इतनी आवाज आना था कि वो सोच से बाहर आता हैं।
रुको रुको मुझे चलना इतना कहते हुये ,वो चिल्लाकर बस वाले को रुकवाता है, और बस के अंदर प्रवेश करता है।
कितनी भीड़ पूरी बस सवारियों से भरी हुई थी,बस चलना प्रारम्भ कर देती हैं,वो खड़ा रहता हैं,बस में काफी देर तक।
तभी उसकी नजर बस में खड़ी हुई एक वृद्ध औरत पर जाती हैं, उससे खड़े होते भी नही बन रहा था ,पर वो किसी तरह खड़ी रहती है।
सुनील अब मन ही मन सोचता है, क्या हमारी संवेदना इतनी निरीह हो गयी है?, क्या हम एक जानवर हो गए है, जो अपने ऐश आराम के लिए दूसरों की पीड़ा को पीड़ा नही समझ पाते,यही सब उसके मस्तिष्क में सब चल रहा था ,और वो अपनी पीड़ा को व्यक्त नही कर पा रहा था।
वह उस वृद्ध औरत के पास जाता है और पूछता हैं, कंहा जाना हैं अम्मा?
बबुआ थोडिन दूर जइबे।
वह वृद्घ इतना उत्तर देती हैं।
ठीक हैं,सुनील उत्तर दे कर उस वृद्ध को एक सीट पर बैठा देता हैं।
खुश रहो बबुआ,वो वृद्ध सुनील को आशिवद देती हैं।
बड़ो का आशीर्वाद हमारे जीवन में बहुत काम आता हैं, लेकिन हम नादाँ रहते हैं,उसको टालते रहते हैं।
अब सुनील खड़े खड़े सब सोच रहा था ।
कंडेक्टर आ कर सुनील से टिकट के पैसे लेता है, सुनील कंडेक्टर से सीट के लिए आग्रह करता हैं।
कंडेक्टर सुनील को अगले स्टॉप पर सीट देना का कह कर आगे बढ़ जाता हैं।
अब एक ढाबे में बस रुकती हैं, सभी सवारियों को नास्ता पानी के लिए तभी सुनील को वहा पर एक आदमी दिखाई देता है,शायद वो आदमी बीमार है, कन्यूकि वो एक ही जगह पर बैठा हैं, अव सुनील उसके पास जाता है।
क्या हुआ आपको?
वह आदमी कुछ भी नही बोलता हैं।
ऐसे अनजाने आदमी को कौन भला कुछ बतायेगा।
सुनील पुनः पूछता हैं?
तभी उसके साथ का आदमी आता हैं।
वह सुनील को बताता हैं की यह एक बहुत ही अच्छा और हत्तकत्ता नौजवान था,लेकिन ये संगत में पड़ कर जुए और शराब का आदी हो गया था 
घर पर कुछ हो या न हो पर शराब रोजाना पीता था।
अभी कुछ दिन पहले ही इसकी किडनी खराब हो गयी हैं।
यह तब से बहुत बीमार हैं।
सुनील उस आदमी से बोलता हैं कि क्या इसको नही पता था इसके घर वाले इसकी पत्नी ने इसको नही रोक??
वह आदमी सुनील को बताता हैं कि इसकी शादी हुई लेकिन इसकी पत्नी जल्द ही इस दुनिया को छोड़ कर कि चली गयी।
उसी के गम में पीना शुरू कर दिया।
इतने में बस ने हार्न देना शुरू कर दिया।
अब सुनील दौड़कर बस में बैठता हैं, जो की पिछले स्टाप में सवारियां उतर गयी थी तो सुनील को जगह मिल गयी थी।
अब सुनील के दिमाग में वो वृद्ध औरत और बीमार आदमी,भीड़ शोरगुल सभी दिमाग में घुमने लगे।
वो सोच में पड गया कि क्या हम किसी के गम में इतने डूब जाये की खुद की कब्र खोदना शुरू कर दे।
कोई ऐसा कार्य करना शुरू कर दे जिससे हम मरने वाले की आत्मा को ठेस पहुचाये या शराब पीना ही प्रारम्भ कर दे।लेकिन ये गलत हैं, हमें अपने शरीर को कष्ट देना और मृतयु तक नही पहुचना चाहिए।
अपने जीवन को सही दिशा में लगाना चाहिए।
अब वह इस भीड़ के बारे में सोच में रहा था कि सरकार को भी कुछ उचित और कठोर कदम उठाने चाहिए और जनसंख्या को नियंत्रित करना चाहिए।
लोगो को आपस में एक दूसरे की मदद करनी चाइये।
लोगो को नैतिकता बना कर रखना चाइये।
भाईचारा ,समानता ,एकता ये सव बना कर रखना चाइये,यही तो हमारे देश की पहचान हैं।
सुनील ये सब सोच ही रहा था कि बनारस का बस स्टॉप आ जाता हैं।
सुनील अपनी यात्रा अनुभव को लेकर इस त्यौहार अपने घर जाता हैं, और कुछ सीख भी जीवन की उसको प्राप्त होती है।
यही सीख जीवन में इंसान के हमेशा काम आती हैं।
कन्यूकि अनुभव से व्यक्ति बहुत कुछ सीखने को पाता है।

लेखक
मो.आकिब जावेद
बिसँडा,बाँदा,उत्तर प्रदेश

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