कविता

नभ ,धरा के मध्य 
है पसरा पर्वत
करता है विस्तार
जहां तक चाहता है
नहीं रुकता रोकने से
धंसा है पृथ्वी के भीतर
उतना ही जितना उठा है ऊपर।

आकिब जावेद 

_______________________________

05 जुलाई 2025

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ