कविता कुत्ता

सियारों को 
कुत्तों ने
जंगल में 
भगाया,
गली - कूचों में
कब्जा जमाया।

कुत्तों की 
आवारागर्दी ने
ऐसा गदर मचाया
आम इंसान 
खूब थर्राया।

समय का पहिया 
ऐसा घूमा 
कुत्तों को
कुछ समझ न आया
कुत्तों को
कर्मों का फल
याद आया।

आकिब जावेद

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5 टिप्पणियाँ

  1. बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय

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  2. निर्दोष जीवों पर हिंसा न सिर्फ़ अमानवीय है, बल्कि यह हमारे समाज की संवेदनहीनता का आईना भी है।
    जरूरी है कि ऐसे मामलों में लोगों में जागरूकता फैलाई जाए कि दया और करुणा ही हमें सच्चा इंसान बनाती है।

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    1. दया एवं जागरूकता वाली भी कविता है।व्यंग्यात्मक एवं अपने हिसाब से कविता को समझ सकते है आदरणीय

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