कविता पाठा के पहाड़

जेठ की तपती दुपहरी में
दहकते है पाठा के पहाड़
जानवर ढूंढते है पानी
पक्षियों को है 
दाना - पानी का इंतेज़ार 
नही बुझती है 
प्यास धरा की
सूखे पेड़ अनायास करते रहते है कौतूहल
पाठा समेटे हुए है
स्वयं में 
इतिहास,भूगोल,संस्कृति
दाना - पानी के इंतेज़ार में 
पाठा के पहाड़।

आकिब जावेद 

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