आज का मुक्तक

मसअला  ये  है  कि  मानते नहीं,
हरकतों  को अपनी  जानते नहीं।
ज़ख्म  ये  नाशूर  बन रहा है अब,
सबक  सिखाने  को ठानते  नहीं।

आकिब जावेद


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ