मुक्तक आकिब जावेद


कुछ  हम  हमारी  कुछ  अदावत  खा  गई  हमें
ज़ीस्त  से   जारी   ये  बग़ावत   खा   गई   हमें
हम  ही  निभातें  फिर  रहे  रिश्तों  की  डोरी  को
झूठों   की  दुन्या  में   जलावत   खा   गई  हमें।

आकिब जावेद

अदावत - दुश्मनी, वैर, शत्रुता, द्वेष
जलावत - उज्ज्वलता, प्रकाश, रौशनी, स्वच्छता, धवलता, सफ़ाई।।
बग़ावत- बाग़ी होना, किसी के खिलाफ़ खड़ा होना, विद्रोह, अवज्ञा, नाफ़रमानी, ग़द्दारी

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