कविता : जंगल में लोकतंत्र



जंगल में है
लोकतंत्र का त्यौहार
सारे पक्षी 
चुनने को राजा तैयार।
मोर, सारस,गौरैया,
कौआ, गिद्ध,बाज
साथ में तीतर।
सब लोकतंत्र में
अपना खम ठोक रहे।

सभा लगा कर 
एक -दूसरे को खूब
आकर्षित कर रहे।

किसी ईमानदार,निष्ठावान
को चुनने से कतरा रहे।
अपनी -अपनी जात में
सब खूबी ढूंढ रहे।

कैसे लोकतंत्र
स्थापित हो पाएगा?
सारे पक्षी जात में बंट जायेगे।
खुली हवा ,ये खुला आसमान,
नदियां,पहाड़,पेड़, पौधें सभी
भेद नहीं रखते किसी में।

अंतः जात वाले का पक्षी ही
चुना जायेगा।
वो ही राजा कहलाएगा।
जंगल के लोकतंत्र का
वो उपहास उड़ाएगा।

आकिब जावेद
बांदा,उत्तर प्रदेश

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