कविता - सड़क

लम्बाई नापती सड़क
मानो नाप रही है,
ज़िंदगी की गति को।
भाग-दौड़,
एकाकीपन,घबराहट
साथ ही साथ नाप लेती है,
अनछुए पहलू,अनसुलझे रहस्य
भीड़ से घिरा मनुष्य,
घबरा रहा भीड़ से।
भूल बैठता है स्वयं को,
वास्तव में जो है।
बस लगता है दिखाने,
स्वयं जो वह नही है।
सड़क को फ़र्क नही पड़ता,
वो अंनत काल से लदी हुई है,
ऐसी ही भीड़ से,
मनुष्यों से,पेड़ो से,
जीव-जंतुओं से।
समय के साथ-साथ
मनुष्यों की तरह,
परिवर्तित हुई सड़क,
सो रही है चिरनिद्रा में।

-आकिब जावेद

एक टिप्पणी भेजें

7 टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (19-10-2022) को "सच्चे चौकीदार" (चर्चा अंक-4586) पर भी होगी।
    --
    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. यथार्थ दर्शन सड़क के अस्तित्व पर।
    सुंदर सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  3. यथार्थ दर्शन सड़क के अस्तित्व पर।
    सुंदर सृजन।

    जवाब देंहटाएं

Thanks For Visit My Blog.