लघुकथा कहानी
उम्मीद की किरण
वकील वर्मा जी ने अपने चपरासी से कहा - रामू दादा, वो देखो बाहर एक बूढ़ा आदमी बैठा है उसे बुला लाओ।
थोड़ी देर में ही वह बूढ़ा आदमी वकील साहब के कक्ष में था।
वकील साहब बोले -दादा जी, आप बहुत दिनों से मेरे आफिस के सामने बैठे दिखाई देते हो, क्या बात है?
आपकी कोई समस्या हो तो बताओ, मुझे अपना ही समझो.
तब वह बूढ़ा बोला -साहब जी, मेरा नाम धुम्मन है, पास के ही गांव का निवासी हूं। कुछ दिन पहले कोरोना में मेरी बीबी और एक बेटी की मौत हो गई, किसी ने बताया कि कोरोना पीड़ित को सरकार राहत -राशि देगी
इसलिए जज साहब से यह बोलने के लिए रोज आता हूं कि मुझे राहत राशि दिलाने की जगह मेरे जो दो बच्चे और हैं उनकी स्कूल फीस माफ़
करा दें।
लेकिन जज साहब से मुलाक़ात ही नही हो रही है।
तब वकील साहब बोले -दादा जी, आपके गांव में सरकारी स्कूल होगा वहाँ लिखाओ अपने बच्चो के नाम,
वहाँ तुम्हारे बच्चों को भोजन, कपड़े,किताबें और बजीफा भी मिलेगा, जब सभी सुविधाएँ सरकारी स्कूल में हैं तो प्राइवेट स्कूलों के लिए क्यों भागते हो,
दादा जी, मैं ख़ुद वकील बना तो सरकारी स्कूल मैं ही पढ़कर बना हूं।
धुम्मन की आँखों मैं आशाओं के चराग जल उठे, वह चल दिया अपने गांव की ओर।
वकील साहब को वह कभी नज़र नही आया।
4 टिप्पणियाँ
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (22-10-2022) को "आ रही दीपावली" (चर्चा अंक-4588) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय सर आपका हार्दिक आभार❤️🥀
हटाएंबहुत ही सुन्दर लघुकथा
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका
हटाएंThanks For Visit My Blog.