ग़ज़ल - आईना भी छिपा नहीं सकता


वज़्न- 2122 1212 22 (112)
अर्कान- फ़ाइलातुन--मुफ़ाइलुन--फ़ेलुन

बोझ दिल का उठा नहीं सकता।
दर्द   अपना  बता  नहीं  सकता।

इश्क़  का  रोग  जो  लगाया  है,
आईना  भी  छिपा नहीं सकता।

ज़िंदगी  में  मुश्किलें  कितनी  हो,
हौसलें को  डिगा नहीं सकता।

दर- ब - दर  ठोकरें  मिली सबसे,
मुफ़लिसी को भुला नहीं सकता।

बाद  मरने  के  दफ़्न  हूँगा  यही,
मुल्क़  को  छोड़ जा नहीं सकता।

रात  में   जाग - जाग  के रोया,
हाल - ए - दिल बता नहीं सकता।

प्यार अनमोल है हिफ़ाज़त कर,
टूटा तो फिर बचा नहीं सकता।

-आकिब जावेद

पिक क्रेडिट- shadab anjum जी

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12 टिप्पणियाँ

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (06 मार्च 2022 ) को 'ये दरिया-ए गंग-औ-जमुन बेच देंगे' (चर्चा अंक 4361) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  2. आदरणीय किब जावेद जी, बहुत अच्छी गजल जी। हर शेर उम्दा है।
    प्यार अनमोल है हिफ़ाज़त कर,
    टूटा तो फिर बचा नहीं सकता।
    सुंदर संदेश!--साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ

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