खोयी हुई आत्मा
टटोल रही है मर्म
खाली पड़ी हुई
कविता के
जिस्म में जाने हेतु
जहाँ पर
श्रृंगार, वीर ,करुणा
तमाम रस आतुर हो
यमक,श्लेष,अलंकार
से मिलने के लिए।
इन सबसे तैयार
कविता निकली हो,
किसी हिम,समुद्र
की गहराइयों में
गोते लगाने हेतु
किसी प्रेमिका की
नथनी बन तो
किसी की बिंदी,
कविता इतराती,
बलखाती,शर्माती
लेखनी से निकल
उतरती हुई
कागज़ पे आती है
अपने अस्तित्व को
पहचानने
कविता।।
-आकिब जावेद
#kavita #kavitakosh
4 टिप्पणियाँ
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा मंगलवार (01 मार्च 2022 ) को 'सूनी गोदें, उजड़ी मांगे, क्या फिर से भर पाएंगी?' (चर्चा अंक 4356 ) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत बहुत हार्दिक आभार आपका आदर.💐💐
हटाएंवाह!बहुत ही सुंदर।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत बहुत शुक्रिया आपका आदर.💐
हटाएंThanks For Visit My Blog.