फटे जूते को,
लेकिन ऐसा लगा
जैसे सिली हो
उसने,
किसी की इज़्ज़त।
फटे जूते के छेद से
समाज करता है
आकलन,
किसी की प्रतिष्ठा,
किसी के रुतबे का,
और उस मोची ने
सिल दिया उस
फटे जूते को,
और बचा ली
किसी की
इज़्ज़त।
लेकिन,
कहाँ कोई?
भर पाता है,
उस मोची की
आर्थिक,सामाजिक,
स्थिति एवं क़िस्मत,
उसकी इज़्ज़त को!
-आकिब जावेद
15 टिप्पणियाँ
Bahut sundar lekhini hai
जवाब देंहटाएंआपकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए बहुत शुक्रिया
हटाएंशानदार मार्मिक कविता
हटाएंआपका बहुत आभार आदरणीय
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 06 जनवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
आपका बहुत बहुत आभार
हटाएंकिसी दुःखियारे को देख एक संवेदनशील इंसान को ही सबसे ज्यादा पीड़ा होती है, आपकी रचना इसी की परिणति है
हटाएंमर्मस्पर्शी प्रस्तुति
हार्दिक आभार आपका
हटाएंशानदार चिंतन
जवाब देंहटाएंआभार
सादर..
हार्दिक आभार आपका,सादर नमन
हटाएंबहुत सुंदर सराहनीय सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय जी आपका
हटाएंयथार्थ का आईना है आपकी रचना।
जवाब देंहटाएंहृदय स्पर्शी।
आपका बहुत बहुत शुक्रिया
हटाएंप्रभावी रचना 🌷🙏🌷
जवाब देंहटाएंThanks For Visit My Blog.