नाम लब पे यूँ उसका जारी है,
ज़िन्दगी साथ में गुज़ारी है।
نام لب پہ یوں اس کا جاری ہے,
زندگی ساتھ میں گزاری ہے!
वक़्त बे-वक़्त जब सियासत हो,
ये सियासत की चाटुकारी है।
وقت بے وقت جب سیاست ہو,
یہ سیاست کی چارٹ قاری ہے!
धर्म ईमान बेच खाए सब,
ये सियासत की ही ख़ुमारी है।
دھرم ایمان بیچ کھائیں سب,
یہ سیاست کی ہی ہماری ہیں!
दे के तकलीफ़ ज़िंदगी में ही,
लोग ही करते फ़ौजदारी है।
دے کے تکلیف زندگی میں ہیں,
لوگ ہی کرتے ہو جداری ہیں!
कल तुम्हारी है आज ये हमारी,
ज़िन्दगी की ये सब पिटारी है।
کل تمہاری ہے آج یہ ہماری,
زندگی کی یہ سب پٹاری ہے!
कब छुपे चेहरें नज़र आए,
वो मुहब्बत कभी कटारी है।
کب چھپے ہیں چہرے نظر آئے,
وہ محبت کبھی کٹاری ہے!
याद आते हो बेहिसाब यूँ तुम,
ये हमें कौन सी बिमारी है।
یاد آتے ہو بے حساب یوں تم,
یہ ہمیں کون سی بیماری ہے!
✍️आकिब जावेद ©عاقب جاوید
16 टिप्पणियाँ
bahut khub
जवाब देंहटाएंBahut shukriya apka
हटाएंआपका बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया जी❤️❤️🥀
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंहर शेर बेहतरीन ।
बहुत शुक्रिया आपका
हटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आपका
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गज़ल हर बंध लाज़वाब।
जवाब देंहटाएंसादर।
आपका बहुत बहुत शुक्रिया
हटाएंबहुत खूबसूरत ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आपका
हटाएंधर्म ईमान बेच खाए सब,
जवाब देंहटाएंये सियासत की ही ख़ुमारी है।//
बहुत बढिया जावेद जी | मनमोहक शेर और मनभावन अंदाज |
बहुत बहुत शुक्रिया आपका
हटाएंधर्म ईमान बेच खाए सब,
जवाब देंहटाएंये सियासत की ही ख़ुमारी है।
वाह!!!
लाजवाब गजल।
बहुत बहुत शुक्रिया आपका
हटाएंBehad Umda Ghazal
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सर
हटाएंThanks For Visit My Blog.