गाँधी तेरी लाठी करती ये पुकार
बन्द कीजिये मानवता पर अत्याचार
जाति-धर्म के झगड़े से हैं सब लाचार
ईमान का भी हो रहा खूब व्यापार।
गाँधी तेरी लाठी करती ये पुकार
लूट-पाट,दंगो की दुकानें चल रहीं
बहू-बेटियों की अस्मिता लुट रहीं
मंदिर-मस्ज़िद भी फल-फूल रहीं
इन सबसे भरा हुआ है अख़बार।
गाँधी तेरी लाठी करती ये पुकार
मानवता से मानव अब तो भाग रहे
नैतिकता को अपने सारे त्याग रहे
गाँधी के वचन तो सबको याद रहे
इसे मनाते हैं जैसे हो कोई त्यौहार।
गाँधी तेरी लाठी करती ये पुकार
सत्य अहिँसा वाला तेरा रूप रहा
अंग्रेज़ो के ज़ुल्मो से तू नही डिगा
दीन-दुखी को तूने हरिजन नाम दिया।
तेरे उसी रूप क़ी है हमको दरकार।
गाँधी तेरी लाठी करती ये पुकार।
-आकिब जावेद
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2 टिप्पणियाँ
सार्थक लेखन वर्तमान परिदृश्य पर
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार आदरणीय जी💐💐💐
हटाएंThanks For Visit My Blog.