ख़ुदा की यूँ कुदरत लिखेंगे
उन्हीं की इबारत लिखेंगे
वही दो जहानों का रहबर
उन्हीं की इनायत लिखेंगे
मुहब्बत के शायर है हम भी
कलम से मुहब्बत लिखेंगे
मिटेंगी तुम्हारी यूँ मुश्क़िल
ख़ुदा को हक़ीक़त लिखेंगे
नज़र चार तुमसे हुई है
तुम्हारी शरारत लिखेंगे
सभी को मुहब्ब्त माँ से हो
कलम से नसीहत लिखेंगे
सिपाही क़लम का बन जा
नहीं हम सियासत लिखेंगे
खदेड़े मुल्क़ से जो दुश्मन
वो सेना की ताक़त लिखेंगे
हवेली जो नफ़रत की ये है
ख़ुशी की वसीयत लिखेंगे
✍️आकिब जावेद
7 टिप्पणियाँ
आपका बहुत शुक्रिया
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया आपका, सलामत रहे आप
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया आपका, सलामत रहे आप
हटाएंबेहतरीन शायरी!!
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत शुक्रिया,
हटाएंThanks For Visit My Blog.